ज़िन्दगी का ज्ञान

कि वो जो बातें हैं,
जिन्हें तुम ज़िन्दगी का ज्ञान समझ बैठे..
हाँ वही जिन्हें मंदिर के प्रसाद की तरह,
बाँटते फिरते हो हर जगह..
उन्हें सहेज कर रखो,
वो तुम्हारी अमानत हैं..

जो बेबस हैं तो रोते हैं,
हमें न दो नसीहतें..
कि हम किस्मत के मारे हैं,
हमें आदत है ठोकर की..
मगर जानते हैं हम,
कैसे उठते हैं गिरने पर..

वो सूरज जो चमकता है,
हमेशा गुरूर में अपने..
कि शाम होते ही,
वो भी ढल ही जाता है..
मगर फिर छंटते अँधेरे के,
वो भी फिर जगमगाता है..

तो बन कर ख़ाक फिर हम भी,
न मगरूर हो कैसे..
क्यों माने ये कह दो बस,
तुम्हारे दस्तूर हैं ऐसे..
हमें है लगते ये,
किसी फितूर के जैसे..

कि नहीं मोहताज़ हम बैठे,
तुम्हारी ऊँगली थाम जीने के..
बंद कर दो नुमाइश तुम,
जो रंजिश है दफ़न अंदर तुम्हारे सीने के..
ये जो हुकूमत बनायी है,
चूल्हे में झोंक दो अपनी..
की अब तुम बस भी कर जाओ,
बादशाहत रोक दो अपनी..

Comments

Popular Posts