आधी लड़की

वो आधी लड़की,
जो हर रात मेरे सपने में आती है..
वो है एक पत्थर के किले के अंदर,
अरमानों को समेटे हुए हो कोई मीनार जैसे..
और वो मीनार है किसी के इंतज़ार में..
वो बहुत जुनूनी लगती है..
हर बात पर मरने-मारने की बातें करती है..
जैसे उसका भरोसा ही नहीं है प्यार में..
वो किसी से प्यार नहीं करती,
मगर नफरत नहीं उसे किसी से..
नफरत का दिखावा वैसे,
बड़ा अच्छा कर लेती है..
वो जो पत्थर का किला उसने बनाया है,
अपने दिल को क़ैद रखने को..
जिसमें छुपी हुई हैं उसकी हसरतें..
वो ज़माने के आगे खून बहाने की बातें करती है,
और हर रात बहाती है तकिये पर अपनी चाहत..
उस सपने वाली लड़की के भी सपने हैं,
जिसमें बसता है कोई आधा लड़का..
जिसके इंतज़ार में है वो,
मगर कहती नहीं किसी से..
हाँ वो हर वो बात नहीं कहती किसी से,
जो वो सच में महसूस करती है..
दिखावटी ज़माने को दिखावे से फरेब देती है..
और खुद को फरेब देती है नफरत के मुखौटे से..
वो आधा लड़का शायद किसी दिन उसके सपनों से निकलकर,
घुस जाएगा किले का दरवाज़ा तोड़ कर..
और उस मीनार पर कर लेगा कब्ज़ा..
वो मीनार जो कभी हुई थी पूरी एक बार पहले भी,
मगर फिर अधूरी हो गयी..
वो आधी लड़की जो कहती है न,
कि वो कभी पूरी नही होना चाहती..
सच ये है शायद कि पूरी हो कर,
वो फिर से अधूरी नहीं होना चाहती..

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