24 मार्च 2015

आज किसी से कुछ कहना नहीं था..आज कुछ लिखना भी नहीं था..आज का दिन बस गुज़ार देना था..जैसे ज़िन्दगी गुज़ार देनी है..आज इतना कुछ चल रहा था कि कह पाना या लिख पाना शायद बस के बाहर था..और कह देने से क्या बदल जाना था..

क्यूंकि आज की तारीख ही ऐसी है..आज जन्मदिन है उनका जिनकी उँगलियों को थाम कर ज़माने की फितरत समझी थी हमने...वो फितरत आज भी कायम है..ये ज़माना आज भी बदल जाने का मोहताज़ है और जो एक चीज़ नहीं बदलती वो ये है कि इसे 'ना बदलना' नहीं आता..

बीते 1 साल में इतने मुखौटे उतरते देखे..इतने चेहरे बदलते देखे..'ज़ात' का मतलब समझ आया और उसका बदल जाना भी..जो खाली जगह वो छोड़ कर गए, कुछ लोगों ने उस खाली जगह पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की भी कोशिश की मगर उनको पूरी तमीज़ और तहज़ीब के साथ उनकी औकात दिखाई गयी..कुछ लोग अब भी आये दिन कोशिश करते पाए जाते हैं और उनका भी हश्र वही होना है..कुछ ख़ास कष्ट नहीं है मुझे ज़माने से या इसकी फितरतों से क्यूंकि बचपन से सुनता आया हूँ दुनिया ऐसी ही है, मुझे कष्ट है तो बस दिखावे से..मगर इसी दिखावे को सह लेने का दिखावा करते हुए जीना है क्यूंकि हर रोज़ मरने से भी मौत नसीब नहीं होती..अगर होती तो शायद मौत की आरज़ू नहीं पल रही होती हर दिल के अन्दर..

ये भी मालूम है कि जैसे ये वक़्त कटा है वैसे ही बचा हुआ वक़्त भी कट ही जाएगा..कुछ उलझनें होंगी, कुछ तमाशे होंगे..थोड़ी कशमकश और बढ़ेगी..हम थोड़े और टुकड़ों में बंटेंगे.. हम थोड़े और बिखरेंगे..शायद थोड़ी और एक्टिंग भी आ जाए ज़माने को दिखाने को कि हाँ हम बहुत सयाने हैं..और वो ढोंग भी कि बेहद मजबूत हैं हम हर हालात से लड़ लेने को..

इतना कुछ बदला इसकी तकलीफ ज्यादा नहीं है.. इन् 365 दिनों में हुआ एक बदलाव जो आज सहा नहीं जा रहा वो ये कि उनके बगैर आज के ये 24 घंटे गुज़ारने मुश्किल हो गए हैं बस..और कुछ नहीं!

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