बादल और चाँद
वो रातें जब चाँद सिमट जाता है बादलों में कहीं और दिखता नहीं किसी को..ये जहाँ उसकी एक झलक के आस में पलकें खोलें आसमां को तकता रहता है..मगर चाँद को बादल की बाँहों में ही सुकून मिलता है..वो नहीं आना चाहता बादलों से बाहर..और बादल की भी यही चाहत है कि वो छुपा ले चाँद को अपनी आगोश में हमेशा के लिए..ताकि उस चाँद को कोई न देख सके कभी और न किसी को उसका इंतज़ार हो..
उसे नहीं है फ़िक़्र इस ज़माने की और न ही उस चाँद के इंतज़ार में बैठे लोगों की..वो स्वार्थी हो चुका है इश्क़ में..उसे अपने चाँद पर डाली गयी एक भी नज़र पसंद नहीं..वो बस चाँद को अपनी बाँहों में ले कर दूर चला जाना चाहता है इस दुनिया से..किसी ऐसी जगह जहाँ बस वो दोनों हो..ठीक वैसे ही जैसे कल रात मैंने तुम्हें अपनी आगोश में ले लिया था और भुला दिया था हमने इस ज़माने को..
उसे नहीं है फ़िक़्र इस ज़माने की और न ही उस चाँद के इंतज़ार में बैठे लोगों की..वो स्वार्थी हो चुका है इश्क़ में..उसे अपने चाँद पर डाली गयी एक भी नज़र पसंद नहीं..वो बस चाँद को अपनी बाँहों में ले कर दूर चला जाना चाहता है इस दुनिया से..किसी ऐसी जगह जहाँ बस वो दोनों हो..ठीक वैसे ही जैसे कल रात मैंने तुम्हें अपनी आगोश में ले लिया था और भुला दिया था हमने इस ज़माने को..
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