एक चौथाई भीष्म

मैं एक चौथाई भीष्म हूँ,
मेरे पास इच्छामृत्य का वरदान नहीं,
मैंने कोई प्रतिज्ञा नहीं ली,
मैं मोह-माया का परित्याग ना कर सका..

मैंने किसी अपने को चुन कर,
किसी अपने पर बाण नहीं छोड़े..
आँखें भी नहीं मूंदी मैंने,
जब कोई औरत शर्मसार हुई..

ना कभी जीत का शौक़ रहा,
ना दृढ़ संकल्प कभी हो पाया,
बहू बना लूँ बल प्रयोग से,
इतना गुरूर भी नहीं ला पाया..

मेरे पास बस एक मृतशैय्या है,
किसी सगे का दिया तोहफा,
जिस पर आराम से लेट कर मैं,
अपनों को लड़ते-मरते देख रहा हूँ...

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