मयखाना

एक तरफ मयखाने में,
मदहोश दिलजलों की तिश्नगी..
दूजी तरफ इश्क़ में पागल,
साकी की दीवानगी..
जाने क्यों मरहम का ये मज़ार,
नासूर का बाज़ार बना बैठा है..
बोतल से टूटे बिखरे हैं,
जहाँ किसी बेवफा के रंज में..
उस राह का मसीहा ही,
किसी का तलबगार बना बैठा है..
मुफ़लिसी के इस दौर में,
हम जाएँ अब कहाँ,
कि अब तो सारा ज़माना ही,
बेवफाओं का यार बना बैठा है..

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