मकड़ी

उस मकड़ी को देखा है ना तुमने,
जो अपने जाले बुनती जाती है..
बिना किसी शोर,
बिना किसी एहसास के,
और बुनते हुए एक दिन,
उसी में फंस कर,
हो जाती है उसकी मौत..
मैं वही मकड़ी हूँ..
जो बुन रहाू है रिश्तों के जाले,
और उसी में उलझ कर,
बिना किसी शोर,
बिना किसी एहसास के,
एक दिन मर जाऊंगा..

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