अल्फाजों का गुरूर

"ज़िन्दगी में हर मोड़ पर टकराती कहानियों में अल्फ़ाज़ों का गुरूर डाल कर लिख देते हो और वो तुम्हारा अहंकार बन जाता है.."

सोच रहा हूँ मेरे बारे में ऐसा सोचने वाली जिस दिन मुझसे मिलेगी मेरे बारे में क्या सोचेगी? जिसे मेरे शब्दों में अहंकार दिखता है उसे मेरे व्यक्तित्व में कितना अहंकार दिखेगा? मगर उम्मीद है शायद उस दिन उसे बता सकूं कि ये अहंकार अल्फ़ाज़ों की नहीं हालातों की देन है..बस उस दिन दुबारा ये ज़ुबान धोखा ना दे दे और वो मेरी ख़ामोशी को फिर से मेरा अभिमान ना समझ बैठे..

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