क्या बदल पाओगे तुम?

ज़िन्दगी कट ही जायेगी..
मौत आ ही जायेगी..
रिश्ते निभ ही जायेंगे..
मोहब्बत हो ही जायेगी..

दिल टूटेंगे ही..
लोग रूठेंगे ही..
कसमें खायी ही जाएंगी..
वादे टूटेंगे ही..

इंसान लाचार होगा ही..
कमज़ोरों पर अत्याचार होगा ही..
भावनायें व्यक्त होंगी ही..
चिंताएं त्यक्त होंगी ही..

नारी की अस्मत लूटेगी ही..
गरीबों की किस्मत फूटेगी ही..
लोगों का रोना लगा ही रहेगा..
दिल का हर कोना सगा ही रहेगा..

कुछ कवितायेँ लिख कर बस,
थोड़ा संभल जाओगे तुम..
मगर कितना भी लिख लो,
क्या बदल पाओगे तुम?

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