ब्लू टिक्स

पहले ब्लू टिक आता था तुम्हें भेजे हर सन्देश के नीचे, मगर अब तो डबल ग्रे टिक भी नहीं आता। कुछ दिनों तक तो दिल को ये कह कर खुश किया कि डाटा खत्म हो गया होगा मगर ये दिमाग इतना बेवकूफ़ भी नहीं कि दिल को चैन से रहने दे, ये जब तक तृतीय विश्व युद्ध का बिगुल ना बजा दे इसे चैन नहीं आता।

हो सकता है शायद तुमने नंबर बदल लिया होगा। परेशान हो गयी होगी तुम अपने आशिक़ों के प्रेम-संदेशों से..या शायद फ़ोन कहीं गिर कर टूट गया होगा। तुमसे संभाली भी कहाँ जाती हैं चीज़ें..तुम्हारी पसंदीदा कान की बाली जो खोयी थी वो मेरे पास है, और वो तुम्हारी बचपन की तस्वीर भी जिसे वापस पाने की चाह तुम्हें मुझसे बात करने पर मजबूर करती थी।

कहीं तुम्हारा फ़ोन किसी जगह पर गुमशुदा लिखे पोस्टर के नीचे उसी तरह तो नहीं चिपका हुआ ना जैसे तुम्हारी तस्वीर मेरे दिल में वैसे ही एक पोस्टर पर चिपकी हुई है इस इंतज़ार में कि कोई फ़ोन करेगा और तुम्हारा पता बताएगा और ये अधूरा संगम शायद पूरा हो सकेगा।

|तुम ही जानो क्या हुआ है तुम्हारे फ़ोन को या फिर तुम्हें। मुझसे दूर जाने की चाहत में कहीं किसी और के पास चली हो गयी हो तुम और भला आज के ज़माने में कौन किसी को उसकी अमानत वापस करता है।

अब वो डबल ग्रे टिक और ब्लू टिक ही हैं मेरे पास तुम्हारी यादों के तौर पर, और एक आस कि जब तक ज़िन्दगी का डाटा चल रहा है शायद किसी दिन वो ब्लू टिक्स फिर से दिख जाएँ या शायद किसी दिन तुम भी डबल ग्रे टिक और ब्लू टिक की आरज़ू लिए कोई सन्देश भेज दो।

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