तलाश

लिखता हूँ,
थोडा-बहुत..
टूटा-फूटा..
कभी शायरी,
कभी भावनाएं,
कभी कवितायेँ,
कभी ज़िन्दगी के कच्चे आंकड़े,
कभी बकवास भी,
मगर लिखता हूँ,
क्यूंकि हर शब्द में तुम्हारी तलाश है मुझे,

तुम, जो न जाने कहाँ हो,
शायद किसी और की असंपादित कविताओं में,
या किसी के छत से दिखते चाँद में,
किसी उचक्के की छेड़-छाड़ में.
या किसी के अर्धरात्रि में बजने वाले फ़ोन में,
किसी के फ़ोन के वॉलपेपर में,
या किसी के फेसबुक के फ्रेंड लिस्ट में,
किसी के प्रेम-पत्र में,
या किसी बैरंग लिफाफे में,


तुम बिन मैं लफ्ज़ के अधूरे फ की तरह हूँ,
जिसे अपने ज का इंतज़ार है,
तुम्हें तलाश रहा हूँ मैं,
और पा लूँगा ऐसी उम्मीद है,
किसी दिन अपनी ही लिखी किसी बात में,
और अगर न पा सका,
तो समझ लूँगा,
कि तुम वही उपन्यास हो,
जिसे लिखने का सामर्थ्य तो मुझमें था,
मगर धैर्य नहीं,
या फिर ये मान लूँगा कि,
कॉपीराइट की समस्या हो गयी होगी,
वरना तुम तो मेरी ही थी...


सर्वाधिकार सुरक्षित
नादान

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