लेखक

वो जो कहते थे,
कि 'grass is always greener on the other side'..
या दूर के ढोल सुहावने होते हैं,
वो भी मेरी तरह आलसी थे..

सोचते होंगे,
कौन जाए उठ कर देखने,
चलो बातें बना लेते हैं,
चार लोगों को सुनाएंगे,
उस दौर में उन चार लोगों का काम था सुनना,
और वही चार लोग अब कहते हुए पाये जाते हैं..

उनकी बातों की कड़वाहट,
खीझ है, उस दूसरी तरफ के घास को ना देख पाने की,
और दूर के ढोल तक ना पहुँच पाने की..
ये खीझ हर हारे हुए इंसान में होती है,
और होती है एक ज़िद्द,
बातें बना कर खुद को जिता लेने की,
यही प्रजाति लेखक कहलाती है..

Comments

Popular Posts