बेजुबां

बेजुबां तू भी है,
बेजुबां मैं भी हूँ..
दोनों जैसे हाथ में आएंगे,
वैसा ही रंग दिखाएंगे..

जो जहीन हुआ पकड़ने वाला,
आबाद कर देगा जहाँ,
जो नामसझ हुआ तो,
बर्बाद कर देगा जहाँ..
जहन्नुम और जन्नत यहीं बन जाएंगे,
हम दोनों कुछ ऐसे काम आएंगे..

बेजुबां तू भी है,
बेजुबां मैं भी हूँ..

मेरा भी खौफ़ है,
तेरा भी खौफ़ है..
तुझसे बस इंसान डरा करते हैं,
मुझसे तो अब भगवान डरा करते हैं..
भेजते हैं वो कुछ जेहादी अपने,
तोड़ डालने को मेरे लिखे सपने..

बेजुबां तू भी है,
बेजुबां मैं भी हूँ..

सुना मैंने एक किस्सा, तुझे भी सुनाता हूँ,
आ तुझे आज मैं तेरी औकात दिखाता हूँ..
मासूम लाशें गिरा दी तूने,
मेरे इस्तेमाल पर..
मैंने कभी दख़ल ना दिया,
तेरे किये बवाल पर..

बेजुबां तू भी है,
बेजुबां मैं भी हूँ..

अब मेरी लाश को देख,
तू अपनी आँखें सेंक..
तू देख ज़रा अपनी की हैवानियत को,
शर्मसार किया है किस कदर तूने इंसानियत को..
ये घिनौना काम, जो तू ना करता,
मैं भी ना मरता, तू भी ना मरता..

बेजुबां तू भी है,
बेजुबां मैं भी हूँ..

नोट- ये कविता फ्रांस में हमले के  लिखी गयी थी.

Comments

Popular Posts