झरने का पत्थर

तुम पहाड़ों से निकलते झरने की तरह हो..
शुद्ध, शीतल, निर्मल..

और मैं उस झरने की ठोकर में पड़े,
सैकड़ों निर्जीव पत्थरों में से एक पत्थर..

जो तड़पता है मिलन को,
पर तुम तक पहुँच नहीं पाता..

और उसकी मोहब्बत दम तोड़ देती है,
तुम्हारी ठुकराई हर बूँद की चुम्बन कर..

उसे लगता है तुम भी दुखी हो शायद,
और तुमसे निकलता पानी आंसू है तुम्हारा..

तुम हँसती हो उसकी मासूमियत पर..
और तुम्हारी कुछ और बूँदें उस पर गिरा देती हो..

जो उसकी बेबसी का एहसास कराती है उसे..
और मान लेता है वो कि नामुमकिन है ये संगम..

Comments

Popular Posts