मजबूरी

हाथों को थाम लेना शौक था उसका,
ऐसा ज़माना कहता था..
हाथों को छोड़ देना मजबूरी थी उसकी,
ऐसा वो कहता था..
कैसानोवा जैसा कुछ कहते थे उसे सब,
जिसका मतलब वो भी नहीं जानता था..
सच्ची कहानी जानने की चाहत में,
उस लड़की ने भी थाम लिया कैसानोवा का हाथ..
आसमान में बनी जोड़ियों में भी मतभेद होते हैं,
मगर ये प्रेम प्रगाढ़ था..
मुक्त था हर छल, फरेब और वासना से,
जैसे एक नवजात शिशु..
इश्क़ था लेकिन, तो अमर होने की चाहत भी थी,
लपेट लिया इसने उन्हें अपने मोहपाश में..
और शुरू हुआ फिर उस नवजात का ज़माने को देखना,
काला टीका भी बेअसर निकला..
लग गयी नज़र पागल डायनों की,
और हो गया वो बच्चा भी धोखे की महामारी का शिकार..
वही धोखा जिसका हर दिल शिकार था,
जिसके लपेटे में आया हर दिल का प्यार था..
दम तोड़ने लगा था इश्क़,
वेंटीलेटर पर लेटे बच्चे की तरह..
और दोनों को ही था,
अपने अंत का इंतज़ार..
इस बार हाथ छोड़ देना उस लड़की की मजबूरी थी,
ऐसा वो कहती थी,
और ज़माना भी..
और लड़का खामोश रहता था इस सवाल पर..

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