क्षणिक मिलन

उजाले का सफ़ेद रंग है वो,
और मैं काली रातों का डसता अँधेरा..
मिलन हुआ था एक बार हमारा,
जब सवेरा होने को था..
जब खूनी लाल होने को था आसमान,
किसी सूरज की लाली से नहीं,
बल्कि उस मृत रिश्ते के खून से..
अगर मैं रह जाता तो वो मर जाती,
और उसका अस्तित्व मुझे मिटा देता..
अब हर रात उस पहर की चाहत में कट जाती है,
जब होता है हमारा मिलन यादों की पहाड़ी के पीछे..
जहाँ लाश पड़ी हुई है उस अधूरे प्रेम की..
जिसको जला जाता है सूरज हर सुबह,
जिसकी राख जगमगाये रखती है दोनों जहाँ को..
शायद कोई और उस उजाले से रौशन हो जाये,
जलन की चिंगारी सीने में दबाये,
फिर आज की रात भुला देने की कोशिश कर रहा हूँ,
उस क्षणिक मिलन को..

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