नंगा अन्तर्मन

चलो माना उसने कुछ नहीं पहना था,
चलो माना वो नंगी थी,
मगर उस पर उठती हर ऊँगली में,
शराफत की कितनी तंगी थी,
हवस था पूरे कपड़ों में,
मर्यादा नग्न रही थी चीख,
काश इन कपडे वालों में से कोई,
दे देता उसे इज़्ज़त की भीख,
काश ये शराफत के चोले,
ढक पाते उसका थोड़ा सा तन,
काश तमाशा देखने वाले,
देख पाते अपना नंगा अन्तर्मन।


सर्वाधिकार सुरक्षित
नादान 

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