तुम एक ज़हर हो ना

एक तमाशा,
एक आरज़ू,
एक चाहत,
एक शिकायत,
क्या हो तुम?

पल-पल की घुटन,
दिल की जलन,
एक बेवफाई,
मेरा दीवानापन,
क्या हो तुम?

जीने की खो चुकी ख्वाहिश,
किस्मत की आज़माइश,
एक अधूरा ख्वाब,
खूबसूरती की नुमाइश,
क्या हो तुम?

एक मीठी चुभन,
एक प्रेम अगन,
एक ख़ामोशी,
मेरा आवारापन,
क्या हो तुम?

क्या हो तुम?
क्या है तुम्हारी सच्चाई?
अँधेरी सी रात हो,
अधूरी सी बात हो,
बीच रस्ते जो रह गया,
वो छूट चूका साथ हो,

क्यूँ हर पल मुझे जलाती हो तुम?
क्यूँ मेरी चाहत को आजमाती हो तुम?
क्यूँ पल-पल मेरी तन्हाइयों को डसती हो?
क्यूँ मेरे ग़म में खिलखिलाकर हँसती हो?

खो क्यूँ नहीं जाती सन्नाटे में कहीं,
क्यूँ मुझे इस कदर सताती हो?
क्यूँ मुझे मेरे हाल पे छोड़ नहीं देती?
क्यूँ मेरी ज़िन्दगी से चली नहीं जाती हो?

सच कहो तुम इस रात का बीता हुआ पहर हो ऩा,
सच कहो तुम मेरे रस्ते की बीत चुकी ठहर हो ना,
सच कहो यही है न तुम्हारी हकीकत,
सच कहो तुम एक ज़हर हो ना ।।।।


सर्वाधिकार सुरक्षित
नादान 

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