एक जलती हुई चिता

एक जलती हुई चिता थी,
जिसमें दहकती हुई आग थी,
और उस पर कोई अपना सो रहा था,
क्या हुआ मन कुछ समझ नहीं पाया,
पर फिर भी ये दिल रो रहा था,
जानी समझी सारी बातें बेमानी लग रही थी,
अपनी हो कर भी सारी शक्लें अनजानी लग रही थी,
उस एक चिता में जाने कितने अरमान जल रहे थे,
जाने कितने टुकड़े हो कर अभिमान जल रहे थे..

बहुत कुछ बदल सा गया था..
मैं, मेरी ज़िन्दगी और मेरी दुनिया...

बहुत सारी बातें थी जो अपने आप से कहनी थी,
बहुत सारी बातें इस ज़माने की सहनी थी,
वो अरमानों की चिता जो जल कर रख हुई थी,
बहती गंगा में अभी उसकी अस्थियाँ बहनी थी..

इस बेकाबू मन में ढेरों सवाल थे,
और बाहर की दुनिया में सैकड़ों बवाल थे,
वो एक चिता अब जल कर राख हो चुकी है,
पर ये जलता मन अब भी दहक रहा है,
कभी किसी चिता में खुद को जला कर ही,
शायद ये अंगार बुझ पाएगी..

सर्वाधिकार सुरक्षित
नादान 

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